।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।।
।। विजया एकादशी ।।
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को ‘विजया एकादशी’ कहा जाता है। जो इस बार 7 मार्च 2024 गुरुवार को है।
एकादशी तिथि की शुरुआत
6 मार्च 2024, बुधवार प्रात: 06:31 मिनट से
एकादशी तिथि का समापन
7 मार्च 2024 गुरुवार प्रात: 04:14 मिनट पर
एकादशी व्रत के पारण का समय
8 मार्च 2024, शुक्रवार को प्रात: 06:33 से प्रात: 09:04 बजे तक।
विशेष
एकादशी का व्रत द्वादशी युक्त सूर्योदय तिथि 7 मार्च 2024, गुरुवार के दिन ही रखें।
बुधवार एवं गुरुवार व्रत के दिन खाने में चावल या चावल से बनी हुई वस्तुओं का प्रयोग बिल्कुल भी ना करें। भले ही आपने व्रत ना रखा हो…. फिर भी चावल या चावल से बनी हुई चीज का खाना वर्जित है।
।। विजया एकादशी व्रत कथा।।
पौराणिक कथा के अनुसार रावण ने जब माता सीता का हरण कर लिया तब प्रभु श्रीराम जी ने हनुमान, सुग्रीव आदि की मदद से लंका पर चढ़ाई की योजना बनाई। राम जी ने सेना सहित लंका की तरफ प्रस्थान किया। समुद्र किनारे पहुंचने पर श्रीरामजी ने विशाल समुद्र को घड़ियालों से भरा देखकर लक्ष्मणजी से कहा कि ये सागर तो अनेक मगरमच्छों और जीवों से भरा है इसे कैसे पार करें। प्रभु श्रीराम की बात सुनकर लक्ष्मणजी ने कहा कि वकदाल्भ्य मुनि के पास इस समस्या का हल जरुर होगा, वह ब्रह्माओं के ज्ञाता हैं, वे ही आपकी विजय के उपाय बता सकते हैं। श्रीरामजी वकदाल्भ्य ऋषि के आश्रम में गए उन्हें सारा वृतांत सुनाया. भगवान राम की इस परेशानी से पार पाने के लिए मुनि श्री ने उन्हें फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की विजया एकादशी का उपवास करने को कहा।
ऋषि वकदाल्भ्य ने कहा कि इस उपवास के लिए दशमी के दिन स्वर्ण, चांदी, तांबे या मिट्टी का एक कलश बनाएं। उस कलश को जल से भरकर तथा उस पर पंच पल्लव रखकर उसे वेदिका पर स्थापित करें। उस कलश के नीचे सतनजा अर्थात मिले हुए सात अनाज और ऊपर जौ रखें। उस पर विष्णु की स्वर्ण की प्रतिमा स्थापित करें। एकादशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल आदि से भगवान श्रीहरि का पूजन करें। सारा दिन भक्तिपूर्वक कलश के सामने व्यतीत करें और रात को भी उसी तरह बैठे रहकर जागरण करें। द्वादशी के दिन नदी या तालाब के किनारे स्नान आदि से निवृत्त होकर उस कलश को ब्राह्मण को दे दें। यदि आप इस व्रत को सेनापतियों के साथ करेंगे तो अवश्य ही विजयश्री आपका वरण करेगी। श्रीराम ने विजया एकादशी का व्रत किया और इसके प्रभाव से राक्षसों के ऊपर विजय प्राप्त की। ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था जो साधक इस व्रत का माहात्म्य श्रवण करता है या पढ़ता है उसे वाजपेय यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है।